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मौलाना ग़ुलाम वस्तानवी सहाब के इंतिक़ाल से समाज को एक गहरा झटका.

दिनांक ५ मे २०२५ : संवाददाता, अल्ताफ शेख
मुस्लिम समाज के प्रतिष्ठित शिक्षाविद् एवं धर्मगुरु मौलाना ग़ुलाम मोहम्मद वस्तानवी का रविवार को लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया। उनके निधन की खबर फैलते ही मराठवाड़ा क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थियों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने पर उनका विशेष जोर रहता था। उनके निधन से न केवल मराठवाड़ा बल्कि पूरे राज्य ने एक विद्वान और समाजसेवी को खो दिया है। मौलाना बस्तानवी (75 वर्ष) का निधन नंदुरबार जिले के अक्कलकुआ में हुआ। वे अपने पीछे दो पुत्र और चार पुत्रियाँ छोड़ गए हैं।
उन्होंने जालना जिले के बदनापुर में एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना की थी। अक्कलकुआ में उन्होंने केवल छह विद्यार्थियों के साथ एक मदरसे की शुरुआत की थी। वे जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम के संस्थापक थे। इसके अंतर्गत उन्होंने “भारतीय चिकित्सा विज्ञान और अनुसंधान संस्थान (IIMSR)” की स्थापना की, जो भारत का पहला अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेज बना।
शिक्षा के क्षेत्र में मौलाना बस्तानवी का योगदान महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि देशभर में उल्लेखनीय रहा है। मुस्लिम समाज की शैक्षणिक उन्नति के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने कई शैक्षणिक केंद्रों की स्थापना की, जहाँ व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष बल दिया गया। भविष्य में ये केंद्र समाज को नई दिशा देने का कार्य करेंगे। धार्मिक प्रचार-प्रसार में भी उनका योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा।
मौलाना डॉ. अब्दुल राशिद मदनी ने कहा कि उनके निधन से समाज को बड़ी क्षति हुई है। वे एक अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी थे जिन्होंने धार्मिक शिक्षा को सामाजिक शिक्षा के साथ जोड़ा, जिससे हजारों छात्रों को लाभ मिला। उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपने कार्यों का विस्तार किया। अनेक मस्जिदों और मदरसों की स्थापना की और बालिकाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। यह बात मुफ्ती नसीम ने कही।
उन्हें मानने वालों की संख्या बहुत बड़ी थी। उन्हें ‘ख़ादिम-उल-क़ुरआन’ और ‘आमीर-उल-मसाजिद’ जैसे सम्मानित उपाधियाँ प्राप्त थीं। उन्होंने युवाओं को सोशल मीडिया और नशे से दूर रहने की सीख दी। बदनापुर में स्थापित उनके मेडिकल कॉलेज से कई छात्रों ने डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की है।





